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Homeप्रदेशबाँहो में तेरी जब भी सिमटती हूँ

बाँहो में तेरी जब भी सिमटती हूँ

बाँहो में तेरी जब भी सिमटती हूँ
लगता है महफूज हूँ हर बला से

बालों को मेरी जब तू सँवारता है
लगता है सुलझी तेरे ही वजूद में

झुमकों को मेरी जब तू हिलाता है
लगता हिल उठी तेरी ही छुअन से

कुमकुम को मेरे जब तू लगाता है
लगता सज रही तेरी ही लगन से

पायल को मेरी जब तू खोलता है
लगता है खुल रही तेरे ही वदन में

हाथों में कंगन जब तू पहनाता है
लगता है बंध रही तेरे ही बन्धन से

तेरे दिल की अंगूठी को पहना है
अपने दिल वाली कोमल उंगली में

अब दिल से दिल हमारे यूँ मिले है
जैसे मिल रहा हो चंदा अपने गगन से

हम भी मिल गए एक दूजे से ऐसे
पानी में क्षीर मिलता हो मगन हो।।

        © डॉ सुधा मौर्य
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