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मोहब्बत की मिठास का फ़नकार : पंकज उधास

मोहब्बत की मिठास का फ़नकार : पंकज उधास
©डॉ सुधा मौर्य
ग़ज़ल गायिकी के मिष्ट आवाज़ के फ़नकार पंकज उधास का अचानक दुनिया से रुख़्सत कर जाना करोड़ों दिलों को तोड़ गया। लेकिन उनकी आवाज़ का जादू सदियों तक फिज़ाओं में गूँजता रहेगा। उन्होंने ग़ज़ल गायिकी को महफ़िलों से निकाल कर आम जनता तक पहुँचाया।

पंकज उधास के सिने कैरियर का प्रारंभ 1972 में फ़िल्म ‘कामना’ से हुई। उन्होंने गायिकी को निखारने के लिए उर्दू की तालीम भी ली।बाद में उनकी मुलाक़ात महेश भट्ट से हुई जो ‘नाम’ फ़िल्म बना रहे थे।इसका एक गाना ‘ चिट्ठी आई है ‘उन्हें ऑफर हुआ और यह गाना उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ।यह गाना जब भी बजता है परदेश में बैठे प्रवासी के ह्रदय को अपने देश की याद में रूला देता है।फिर उनके जीवन में हिंदी फ़िल्मों के लिए गाना गाने की शुरूआत हो गई।उन्होंने एक से एक बेहतरीन नग़में और ग़ज़ल गाए है जिनमें ‘ चाँदी जैसा रंग है तेरा ‘गीत तो दीवानों की पहली पसंद है।इसी तरह ‘ जिये तो जिये कैसे बिन आप के’ एक विरही के ह्रदय की पीड़ा को पूरी तरह उकेरता है।’ना कजरे की धार,ना कोई किया सिंगार’ एक प्रसाधन विहीन नारी के अप्रतिम सौंदर्य को उद्घाटित करता है तो वही ‘थोड़ी- थोड़ी पिया करो’ आशिक़ों की आवाज़ बन जाता है। ‘और आहिस्ता कीजिए बातें धड़कनें कोई सुन रहा होगा’ या ‘आप जिनके क़रीब होते है,वे बड़े खुशनसीब होते है’ गीत प्रणय की आतुरता को प्रकट करता एक नायाब गीत है।उनके यह मंजुल मनोहारी गीत संगीत की दुनिया के कोहिनूर है और सदैव अमर रहेंगे।उनके कई एलबम भी निकले है जिनमें आहट, मुकर्रर, तरन्नुम, महफ़िल,नशा,घूंघट,हसरत,मुस्कान,एक तरफ़ उसका घर आदि प्रमुख है।

पंकज उधास का गजल गायक बनाना एक अनचाहा संयोग रहा। वे तो बनना कुछ और चाहते थे। उनका सपना था चिकित्सा क्षेत्र में कार्य करने का। पर नियति को शायद कुछ और मंजूर था और वह ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में पर्दापण कर गए। उन्होंने विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से की तथा उस्ताद नवरंग से संगीत की शिक्षा भी ली थी। उनके घर का माहौल संगीत से आपूर्ण था फलतः वे भी 7 वर्ष की उम्र से ही गाने लगे।उनके बड़े भाई मनहर उधास ने उनकी इस प्रतिभा को पहचानकर उन्हें प्रेरित किया।धीरे-धीरे ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में पंकज उधास ऊँचाइयाँ छूने लगे।

पंकज उधास अपनी गायिकी के लिए पद्म श्री,फ़िल्म फेयर पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी हुए है।उन्होंने वैसे कई जगहों की महफ़िलों को अपनी ग़ज़ल गायिकी की रौनक से रंगीन किया है पर 1985 में मयूर पंख की ओर से होटल क्लार्क अवध में सजी महफ़िल और वर्ष 2021 फरवरी में सजी महफ़िलें दयाल जो कोविड संक्रमण के दौरान आयोजित हुई थी उसमें शिरकत कर दयाल यथार्थ अवध सम्मान से सम्मानित होकर अपनी ग़ज़ल गायिकी से लखनऊ को रौनक- ए- शान का दर्जा दिला दिया।पंकज उधास का क्रेज इतना ज्यादा है कि हर तबके के लोग उन्हें चाव से सुनते है।उनकी आवाज़ में वह कशिश और मिठास है कि हर कोई उनकी तरफ़ खींचा चला जाता है।कोरोना काल में उनका गाया गीत ‘निकलो ना बेनक़ाब जमाना ख़राब है’ आज भी अपनी मुग्धता पर मुग्ध कर देता है।वह भाषा के जादूगर है।आम आदमी की भाषा में ग़ज़ल गायिकी को जोड़कर उसे लचीला बनाने में उनका कोई सानी नहीं है।कहा जा सकता है कि जब तक संगीत की दुनिया में सुर रहेगा तब तक पंकज उधास की ग़ज़ल गायिकी सिरमौर रहेगी और आम जन को अपनी तरफ़ आकृष्ट करेंगी वे हमारे बीच रहे या न रहे पर दिलों में, इश्क़ में,जुनूनियत में हमेशा जिंदा रहेंगे।

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